सीहोर। जिला अस्पताल में सफाई व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है। हालात इतने खराब हैं कि अस्पताल में हर तरफ गंदगी है। इससे मरीज और उनके परिजन बेहद परेशान हैं। हर महीने सफाई और सुरक्षा पर लाखों रुपए खर्च होते है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
अस्पताल में जगह- जगह फैली गंदगी और कूड़े- कचरे के ढेर से संक्रमण का खतरा बढ़ रहा हैं। वार्डों में धूल की परत जमी हुई है. टॉयलेट्स में गंदगी का अंबार लगा हुआ है और कूड़ेदान कचरे से भरे हुए हैं। इतना ही नहीं कई जगहों पर पानी जमा होने से मच्छरों का प्रकोप भी बढ़ रहा है, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा बना हुआ है।
मरीजों और परिजनों की नाराजगी
इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे मरीजों और उनके परिजनों का कहना है कि सफाई व्यवस्था सिर्फ नाम मात्र की है। कई बार शिकायतें करने के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला है। मरीजों के साथ आए परिजनों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, एक मरीज के परिजन ने कहा, “यहां की स्थिति किसी सरकारी अस्पताल जैसी नहीं, बल्कि किसी उपेक्षित जगह की तरह लगती है।
बड़े बजट के बावजूद लचर व्यवस्था
जिला अस्पताल में सफाई पर हर महीने लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इसका लाभ मरीजों तक नहीं पहुंच रहा। यह सवाल उठना लाजिमी है कि इतनी बड़ी राशि खर्च होने के बावजूद सफाई की यह स्थिति क्यों बनी हुई है? क्या यह धनराशि सिर्फ कागजों पर ही खर्च हो रही है?
अस्पताल में होनी चाहिए सफाई
अस्पताल प्रबंधन और जिला प्रशासन की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करें। अगर इतने बड़े बजट के बावजूद अस्पताल में गंदगी बनी हुई है, तो यह निश्चित रूप से गंभीर लापरवाही को दर्शाता है। प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले की गहराई से जांच करे और दोषी अधिकारियों या ठेकेदारों पर कड़ी कार्रवाई करे।
क्या मिलेगा समाधान?
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन इस गंभीर समस्या का समाधान निकालेगा या फिर यह सफाई का पैसा केवल कागजों पर ही खर्च होता रहेगा? जरूरत इस बात की है कि अस्पताल में सफाई व्यवस्था को प्राथमिकता दी जाए, ताकि मरीजों को एक स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण मिल सके। आम जनता और मरीजों की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है कि अस्पताल में सफाई और स्वास्थ्य सुविधाओं को सही तरीके से लागू किया जाए।




