वर्ष 1923 में हुई थी सलकनपुर मेले की शुरुआत


सीहोर।
आज से चैत्र नवरात्रि पर्व की शुरुआत हो गई है। प्रसिद्ध देवीधाम सलकनपुर मंदिर सहित जिले भर के माता मंदिरों में अल सुबह से श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंच रहे हैं। प्रसिद्ध देवीधाम मंदिर की पहाड़ी जय माता दी के स्वर से गंूज रही है। 

वरिष्ठ पत्रकार रघुवरदयाल गोहिया सलकनपुर मंदिर के इतिहास को लेकर बताते हैं कि जिले का प्रसिद्ध देवी धाम सलकनपुर मेला भोपाल रियासत के नवाबी शासन काल में 1923 से प्रारंभ हुआ था, तब विंध्यवासिनी विजयासन देवी का स्थान विंध्याचल पर्वत श्रेणी पर स्थित पत्थर के एक अनघढ़ चबूतरे पर था। वहां तक पहुंचने के लिए मानव निर्मित कोई रास्ता भी न था। पहाड़ी चट्टानों से गुजरते हुए बड़ी मुश्किलों से जाना पड़ता था। यह स्थान लोगों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र अभी भी उसी प्रकार से है। फिर भी तब और आज के सलकनपुर में जमीन आसमन का फर्क आ गया है। 

मंदिर का इतिहास एक नजर में

सलकनपुर मंदिर सीहोर जिले में स्थित है। इसकी दूरी भोपाल से करीब 70 किमी है। गर्भ गृह में बीजासन माता की प्राकृतिक रूप से निर्मित एक मूर्ति है। मंदिर परिसर में देवी लक्ष्मीए सरस्वती और भैरव के मंदिर भी स्थित हैं। सलकनपुर वाली बिजासन माता का मंदिर 1000 फीट ऊंची पहउड़ी पर बना हुआ है। मंदिर तक जाने के लिए पहले सिर्फ सीढिय़ां ही बनी हुई थी जिनकी संख्या एक हजार से ज्यादा है। अब मंदिर तक ऊपर पहुंचने के लिए सडक़ मार्ग और रोपवे भी बना दिया गया है।

बताया जाता है कि इस पवित्र मंदिर का निर्माण कुछ बंजारों द्वारा करवाया गया था। यह बात लगभग 300 साल से ज्यादा पुरानी है। एक बार पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे यहां पर रुके थे तो उनके पशु  गायब हो गए थे। जब बंजारे अपने पशुओं को ढूंढने के लिए निकले तो उन्हें यहां पर एक छोटी बालिका मिली। जब बंजारों ने लडक़ी से कहा कि उनके पशु गम हो गए हैं तो उसने कहा कि यहां माता के स्थान पर मनोकामना मांग सकते हैं।

बंजारों में कहा कि हम नहीं जानते कि यहां पर माता का स्थान कहां पर है, तब उस लडक़ी ने एक पत्थर फेक कर संकेत दिया। उसने जिस जगह पर पत्थर फेंका था वहां पर माता के दर्शन हुए। इसके बाद बंजारों ने वहां माता की पूजा की और कुछ समय बाद उन्हें अपने गुमे हुए पशु मिल गए। इस चमत्कारी घटना की खबर जब लोगों को लगी तो यहां बहुत से लोग मन्नत मांगने के लिए आने लगे। विध्यांचल पर्वत पर विराजमान बिजासन माता को असंख्य लोग अपनी कुल देवी के रूप में मान कर पूजा करते हैं।

सलकनपुर का मेला

फरवरी माह में सलकनपुर में माघ मेला आयोजित किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां विजयासन दरबार में अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद जमाल चोंटी उतारने और तुलादान करने के लिए आते हैं। माघ मेला एक बहुत बड़ा पशु मेला है। इस मेले में बड़ी संख्या में पशु विक्रता क्रेता शामिल होते हैं। इसलिए इस मेले को पशुओं की बिक्री का मेला भी कहते हैं। इतिहास की अनेक किताबों में उल्लेख है कि यह मेला भोपाल रियासत के दौरान तत्कालीन नवाब ने शुरू करवाया था। साथ ही सारी सुविधाओं के इंतजाम किए थे।

देवी धाम सलकनपुर मेला रविवार से प्रारंभ हो गया है। साथ ही आज से चैत्र की नवरात्रि भी शुरू हो गई हैं। जानकारी के अनुसार सन् 1923 में भोपाल के तत्कालीन नवाब ने इस मेला की शुरुआत करवाई थी। इसे मेला मवेशी के नाम से जाना जाता था। अब इसे पशु मेला के नाम से जाना जाता है। इस मेला में यहां लाखों की संख्या में लोग आते हैं। 



तब यह मेला 15 दिन लगता था। मेला की व्यवस्था तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट मेला प्रेसिडेंट जिला सीहोर रियासत भोपाल मुकाम सीहोर दफ्तर मुनिस्पिलटी सीहोर के नाम से सरदार अमरजीत सिंह  बीएएलएलबी करते थे। 

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