सीहोर।
राजनीति में वर्चस्व न हो, प्रतिद्वंदता न हो तो फिर राजनीति किस काम की। बगैर वर्चस्व राजनीति अधूरी है। इस वर्चस्व की लड़ाई में शे और मात का खेल भी होता है। जैसा कि मुख्यालय पर बीते ढाई साल से देखने को मिल रहा है। राजनीति के जानकारों ने इसे ए और बी टीम नाम दिया है।
दिलचस्प बात यह है कि करीब एक दशक तक मुख्यालय की राजनीति में एक ही टीम हुआ करती थी। इसी एक ही टीम का डंका भी बजा, लेकिन बीते करीब ढाई साल से मुख्यालय की राजनीति में दूसरी टीम का भी उदय हुआ। खास बात यह है कि इस टीम में राजनीति के निपुण चाणक्य कहे जाने वाले जनप्रतिनिधि शामिल हैं। नतीजतन, अब मुख्यालय की राजनीति में ए टीम का डंका ठंडा पड़ गया है, जबकि अब बी टीम भारी पडऩे लगी हैं। यह बात हम नहीं, बल्कि जिले में करीब ढाई साल से घटित हो रहे घटनाक्रम को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।
दो बार जमाया वर्चस्व
मुख्यालय पर बी टीम के उदय होने के बाद यह बी टीम जिला व मुख्यालय की राजनीति में दो बार अपना वर्चस्व जमा चुकी है। वर्तमान में भी हर एंगल से यह टीम भारी नजर आ रही है। हालांकि राजनीति के जानकारों का कहना है कि अब वर्चस्व जमाने की बारी ए टीम की है। चर्चा है कि बहुत जल्द ही ए टीम में भी बहुत कुछ अच्छा होने वाला है। हालांकि बी टीम ने भी ए टीम के इस अच्छे काम को रोकने के जतन शुरू कर दिए हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन भारी पड़ता है।