सहकारिता के महारथी हैं रमेश सक्सेना...

सीहोर। मध्यप्रदेश में सहकारिता चुनाव का बिगुल बज गया है। मप्र राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने ये चुनाव 5 मई से सितंबर तक कराने का निर्णय लिया है। चुनावों की घोषणा होते ही जिले में सभी की नजर वरिष्ठ नेता रमेश सक्सेना की तरफ मुड़ गई है। दरअसल, पूर्व विधायक रमेश सक्सेना सहकारिता के महारथी कहलाते हैं। 

बता दें मप्र राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने चुनाव कार्यक्रम एक साल पहले जारी किया था, लेकिन लोकसभा चुनाव के चलते इसे टाल दिया गया था। अब, प्रदेश की 4531 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों में अध्यक्ष और सदस्यों के चुनाव किए जाएंगे। यह चुनाव किसानों के जरिए किए जाते हैं। चुनाव चार चरणों में होंगे और इस प्रक्रिया के तहत समितियों और बैंकों में संचालक मंडल का गठन किया जाएगा। वर्ष 2023 में विधानसभा चुनाव से पहले जबलपुर में चुनाव को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने दिसंबर 2023 में चुनाव कराने के निर्देश दिए, लेकिन लोकसभा चुनाव के कारण चुनाव प्रक्रिया में और देरी हुई।

चुनाव न होने से यह दिक्कत

चुनाव न होने के कारण समितियों और बैंकों में नीतिगत निर्णय नहीं लिए जा पा रहे हैं। किसानों से जुड़ी समस्याओं का समाधान भी प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा समितियों के विस्तार और कारोबार में भी निर्णय समय पर नहीं हो पा रहे हैं। प्रशासक केवल प्रशासनिक कामों पर ध्यान देते हैं, जिससे समितियों की प्रमुख गतिविधियों में देरी होती है।

इन समस्याओं का समाधान होगा

यह चुनाव पिछले कई वर्षों से लंबित हैं, लेकिन अब प्रदेश में चुनाव प्रक्रिया शुरू हो रही है। इसके तहत 25 हजार से अधिक कर्मचारियों की जरूरत होगी, जिन्हें जीएडी से आदेश जारी कर चुनाव कराने के लिए नियुक्त किया जाएगा। इसके अलावाए चुनाव को सुचारू रूप से संचालन के लिए पुलिस बल की भी आवश्यकता होगी।

वर्ष 2013 में हुए थे चुनाव

वर्ष 2013 में चुनाव के बाद पांच वर्ष के लिए संचालक मंडल ने काम किया। इसके बाद वर्ष 2018 में चुनाव होना था, लेकिन विधानसभा चुनाव के चलते पैक्स चुनाव टल गया। वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव आ गया। इसके बाद कांग्रेस सरकार चुनाव की तैयारी करा रही थी, फिर सरकार गिर गई। वर्ष 2020 में कोरोना आ गया, इसके बाद निकाय चुनाव शुरू हो गए। वर्ष 2023 में चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई। कोर्ट ने दिसम्बर 2023 में सरकार को चुनाव कराने के निर्देश दिए। इसके बाद फिर अलग-अलग कारणों से चुनाव टल गए।



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