वलिंग भगवान शिव के निर्गुण और निराकार स्वरूप का प्रतीक है-कथा वाचक पंडित चेतन उपाध्याय
सीहोर। शिवलिंग भगवान शिव के निर्गुण और निराकार स्वरूप का प्रतीक है। सच्चिदानन्द स्वरूप भगवान शिव सर्वव्यापी हैं। काल भैरव शिव के ही अवतार हैं, जो काशी में कोतवाल के रूप में विराजमान हैं। राम भक्त हनुमान शिव के ही अंशावतार हैं। शिव के तेज को पवनदेव ने अंजनी के गर्भ स्थापित किया, इसलिए हनुमान पवन पुत्र, अंजनीसूत, शंकर सुवन व केसरीनंदन कहलाए। उक्त विचार शहर के प्राचीन श्री हंसदास मठ, दशहरा बाग उमा शंकर धाम कालोनी के पास जारी सात दिवसीय संगीतमय श्री शिव महापुराण के विश्राम दिवस में कथा वाचक पंडित चेतन उपाध्याय ने कहे। श्री हंसदास मठ में स्फटिक श्री रिद्धेश्वर महादेव प्राण-प्रतिष्ठा सिद्ध श्री हनुमान महाराज की स्थापना का आयोजन किया गया गया। महोत्सव का आयोजन महंत श्री हरिरामदास महाराज के मार्गदर्शन में किया गया। विश्राम दिवस पर मंगलवार को बड़ी संख्या में विभिन्न क्षेत्रों से आए संत और श्रद्धालुओं ने भंडारे में प्रसादी ग्रहण की। इस मौके पर सुबह कलशारोहण, मूर्ति श्रृंगार दर्शन, पूर्णाहुति, महा आरती, पुष्पांजली और भव्य भंडारे का आयोजन किया। इसके अलावा कथा के अंतिम दिवस में समुद्र मंथन, 12 ज्योतिर्लिंग और महाशिवरात्रि की महिमा का वर्णन किया।
उन्होंने भारतवर्ष में यह 12 ज्योतिर्लिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं। इनमें सर्वप्रथम श्री सोमनाथ जी का स्मरण किया जाता है। श्रावण माह में ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और पूजन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ गुजरात, मल्लिकार्जुन आंध्र प्रदेश, महाकालेश्वर मध्य प्रदेश, ओंकारेश्वर मध्य प्रदेश, केदारनाथ उत्तराखंड, भीमाशंकर महाराष्ट्र, विश्वनाथ उत्तर प्रदेश, ?र्त्यंबकेश्वर महाराष्ट्र, वैद्यनाथ झारखंड, रामेश्वर तमिलनाडु व घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजी नगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इनके दर्शन मात्र से इंसान मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है।
भक्ति के बिना जीवन अधूरा
शिवमहापुराण के विश्राम दिवस पर कथा वाचक पंडित श्री उपाध्याय ने कहाकि भक्ति के बिना जीवन अधूरा है, लाखों योनियों में सबसे सुंदर शरीर मनुष्य का है, भगवान के आशीर्वाद के बिना मनुष्य जीवन प्राप्त नहीं होता भगवान शिव का संपूर्ण चरित्र परोपकार की प्रेरणा देता है। भगवान शिव जैसा दयालु करुणा के सागर कोई और देवता नहीं है। चंचुला नाम की स्त्री को जब संत का संग मिला वह शिव धाम की अनुगामिनी बनी। एक घड़ी के सत्संग की तुलना स्वर्ग की समस्त संपदा से की गई है। भगवान शिव भी सत्संग का महत्व मां पार्वती को बताते हुए कहते हैं कि उसकी विद्या, धन, बल, भाग्य सब कुछ निरर्थक है जिसे जीवन में संत की प्राप्ति नहीं हुई। परंतु वास्तव में सत्संग कहते किसे हैं। सत्संग दो शब्दों के जोड़ से मिलकर बना यह शब्द हमें सत्य यानि परमात्मा और संग अर्थात् मिलन की ओर इंगित करता है।
पहले संतों को प्रसादी और उसके पश्चात सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु
श्री हंसदास मठ में स्फटिक श्री रिद्धेश्वर महादेव प्राण-प्रतिष्ठा सिद्ध श्री हनुमान महाराज की स्थापना का दिव्य अनुष्ठान किया गया। इस मौके पर महंत श्री हरिरामदास महाराज के मार्गदर्शन में कथा के विश्राम के पश्चात बड़ी संख्या में आए साधु-संतों को प्रसादी प्रदान कर सैकड़ों की संख्या में प्रसादी का वितरण किया।
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