डॉ. सुदीप शुक्ल
महीनों से दिखाए जा रहे भय के बाद अमेरिका ने अंतत: दुनिया के 92 देशों की आयातित वस्तुओं पर प्रस्तावित टैरिफ की सूची जारी कर ही दी। भारत पर भी 25% टैरिफ के साथ ही रूस से तेल आयात करने पर 10% पैनल्टी भी प्रस्तावित की गई है। ट्रंप का यह कदम भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों पर ही नहीं बल्कि वैश्विक आर्थिक समीकरणों पर भी सवालिया निशान लगा रहा है। दशकों में प्रगाढ़ हुए भारत-अमेरिका संबंधों के एवज में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत से जो चाहते हैं, वह संभव नहीं है। उन्हें यह समझना ही होगा कि भारत प्रथम ही भारत की नीति है।
भारत अब करवट ले चुका है। 2047 तक विकसित भारत समर्थ भारत का लक्ष्य की ओर देश बढ़ रहा है। यह सिद्ध हो चुका है कि विश्व की पांच शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक, प्रभावी वैश्विक पहचान और तेजी से उभरता स्वा भिमानी भारत अपने राष्ट्रीय हितों की प्राथमिकता के आधार पर ही किसी देश के साथ संबंधों की दिशा तय करता है। ऐसे में वाशिंगटन को भी यह बात समझनी चाहिए कि उसके सरोकार यदि भारत के सरोकारों से मेल खाएंगे तभी द्विपक्षीय संबंधों का लाभ है अन्यथा आपदा में अवसर तलाशने की भारतीय महारत भी किसी से छिपी नहीं है। तटस्थ भारतीय नीति एवं रूस से तेल आयात न रोक पाने की हताशा में ट्रंप भारत अमेरिकी संबंधों को दांव पर लगा रहे हैं जो अमेरिकी हितों के लिए भी अहितकर होगा।
दुनिया के देशों से आयातित माल पर टैरिफ लगाने के पीछे ट्रंप व्यापार असंतुलन को दूर करने को कारण बताते रहे हैं। भारत के संदर्भों में उनका तर्क है कि यहां आयात शुल्क ज्यादा होने के कारण अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़ रहा है। इसके विपरीत वास्ताविकता यह है कि भारत में अमेरिकी उत्पाादों पर आयात शुल्क करीब 17% है, जो अमेरिकी औसत के मुकाबले ज्यादा है किन्तु भारतीय शुल्क विश्व
व्यापार संगठन की तय की हुई सीमा के भीतर ही है जबकि अमेरिका की ओर से घोषित नए शुल्क विश्व व्यापार संगठन से की गई उसी की प्रतिबद्धता के विपरीत है।
राष्ट्रपति ट्रंप की राजनीति आक्रामक, व्यापार-हित केंद्रित और 'अमेरिका फर्स्ट' के नारों से ओत-प्रोत रही है। उनका मानना है कि टैरिफ प्रस्ताव का लक्ष्य वस्तुतः वे सभी देश हैं जो अमेरिका का व्यापार घाटे बढ़ा रहे हैं। अमेरिका के लिए भारत हीरे, आभूषण, फार्मा, स्टील, टेक्सटाइल्स और आईटी सेवाओं का बड़ा निर्यातक है। रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदने पर भारत को 10% पैनल्टी की धमकी ट्रंप की उस वैश्विक वर्चस्ववादी मानसिकता को दर्शाती है, जो यह मानती है कि हर निर्णय वाशिंगटन की स्वीकृति से ही लिया जाना चाहिए।
भारत-अमेरिकी संबंध बीते एक दशक में रणनीतिक, रक्षा, तकनीकी और आर्थिक क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति कर चुके हैं। इसके बाद भी ट्रंप की टैरिफ नीति और रूसी तेल आयात पर आपत्ति द्विपक्षीय विश्वास को गहरा आघात पहुँचा सकती है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा को लेकर किया गया निर्णय राष्ट्रीय हितों का प्रश्न है और यही बात ट्रंप को खटक रही है।
हाल के वर्षों में भारत-अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी मजबूत हुई है। क्वाड, आईसीईटी, रक्षा उपकरणों का आयात, संयुक्त सैन्य अभ्यास और सेमी-कंडक्टर निर्माण में सहयोग इसकी मिसाल हैं। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका नीति और पूर्ववर्ती राष्ट्रपति जो बाइडन की भारत नीति अपेक्षाकृत संतुलित रही है। ऐसे में ट्रंप की टैरिफ-संबंधी धमकियां दोनों देशों की प्रगति को झटका दे सकती हैं।
टैरिफ वॉर की इस आत्मतघाती नीति का सबसे बड़ा असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। आयातित वस्तुओं के महंगे होने से महंगाई बढ़ने, उत्पादन लागत में वृद्धि होने और अमेरिकी कंपनियों की आपूर्ति श्रृंखला के असंतुलन की आशंका है। चीन के साथ पहले की टैरिफ लड़ाई इसका प्रमाण है, जिसमें अमेरिका को अपेक्षित लाभ नहीं मिला।
भारत के लिए टैरिफ संघर्ष चुनौती तो है किंतु एक अवसर भी है। अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता को कम कर भारत नई बाजार रणनीतियाँ बना सकता है जैसे अफ्रीका, मिडिल ईस्ट, आसियान और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ व्यापारिक गठबंधन के अवसर खुले हुए हैं। साथ ही भारत की तेज़ विकास दर (7% से अधिक) और वैश्विक आर्थिक स्थिति देश के पक्ष में है।
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को ‘डेड इकॉनामी’ तक कह दिया, जो वस्तुतः एक राजनीतिक हताशा का प्रतीक है। भारत की रूस से तेल आयात नीति, अमेरिका की एकतरफा अपेक्षाओं की बजाय राष्ट्रीय हितों पर ध्यान और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति ट्रंप की 'चौधराहट' को चुनौती देते हैं। इस सबके बावजूद उन्हें यह समझना होगा कि भारत अब वह नहीं जो केवल सहायता पर निर्भर हो बल्कि यह 21वीं सदी का भारत है, जो वैश्विक विकास के मंच पर नेतृत्व कर रहा है।
भारत आज ग्लोबल साउथ का सबसे मुखर प्रतिनिधि है। भारत परमाणु शक्ति संपन्न लोकतांत्रिक देश है, तकनीकी रूप से सक्षम है और वैश्विक मंचों पर शांतिपूर्ण कूटनीति का पक्षधर है। जी-20 अध्यक्षता, कोविड वैक्सीन मैत्री, अंतरिक्ष तकनीक, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर आदि भारत की नई भूमिका के संकेत हैं। ऐसे में अमेरिका का भारत से संबंध बिगाड़ना उसके दीर्घकालिक हितों के प्रतिकूल है।
यदि ट्रंप अपनी वर्तमान घोषणाओं पर अडिग रहते हैं, तो भारत-अमेरिका संबंधों में रणनीतिक स्थिरता को धक्का पहुँच सकता है। हालांकि भारत की बहुध्रुवीय विदेश नीति देश को वैकल्पिक मार्गों की तलाश में सक्षम बनाती है। अमेरिका को भी दीर्घकालिक लाभ के लिए भारत के साथ सम्मानजनक और संतुलित संबंध बनाए रखने ही होंगे।
डोनाल्ड ट्रंप को यह समझना होगा कि भारत केवल एक 'नया बाज़ार' नहीं, बल्कि भविष्य की आर्थिक महाशक्ति है। आज के वैश्विक परिदृश्य में भारत से संबंध बिगाड़ना अमेरिका की रणनीतिक चूक होगी। ‘राष्ट्रहित सर्वोपरि’ भारत की स्पष्ट विदेश नीति है और यही नीति आज देश को सुदृढ़ बना रही है। अब ट्रंप को यह निर्णय लेना है: वह भारत को साझेदार मानेंगे या प्रतिद्वंद्वी लेकिन इतिहास केवल उसी को याद रखेगा जो सहयोग और सम्मान के मार्ग पर चला।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)