सीहोर। आज शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर हम आपको सीहोर के एक ऐसे शिक्षक से मिलवा रहे हैं, जिनकी जीवन की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची लगन और समर्पण के आगे कोई भी बाधा मायने नहीं रखती। हम बात कर रहे हैं 45 वर्षीय गोपाल दत्ता की, जिन्होंने दृष्टिबाधित होने के बावजूद शिक्षा के क्षेत्र को अपना करियर बनाया और आज बच्चों के भविष्य को संवारने में जुटे हुए हैं।
गोपाल दत्ता की जिंदगी का सफर बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है। आंखों की रोशनी चले जाने के कारण वे 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई नहीं कर सके, लेकिन उनके भीतर ज्ञान की लौ कभी नहीं बुझी। उनका एक ही सपना था, अगर मेरी आंखों में अंधेरा है, तो मैं दूसरों की जिंदगी में उजाला भर सकूं। इसी सोच के साथ उन्होंने शिक्षक बनने का फैसला किया।
80 किमी का सफर, कभी न थमी रफ्तार
साल 2014 में शिक्षक बनने के बाद गोपाल दत्ता की पहली पोस्टिंग अशोकनगर के मुंगावली में हुई। इसके बाद उनका तबादला सीहोर जिले के लाचोर टप्पर सेटेलाइट स्कूल में हुआ। इस दौरान वे रोज 80 किलोमीटर का सफर तय करते थे। बस से उतरने के बाद भी वे एक किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचते थे, क्योंकि बच्चों को पढ़ाना उनके लिए सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि एक जुनून था।
गणित, हिंदी और अंग्रेजी का करते हैं अध्यापन
आज गोपाल दत्ता बढिय़ाखेड़ी माध्यमिक स्कूल में गणित, हिंदी और अंग्रेजी जैसे विषयों का अध्यापन कराते हैं। वे कहते हैं कि वे पूरी लगन से पढ़ाते हैं, क्योंकि उनका एकमात्र लक्ष्य बच्चों का भविष्य संवारना है।
परिवार-मित्रों का भरपूर सहयाग
गोपाल दत्ता के इस कठिन सफर में उनके परिवार व साथी शिक्षकों का भी भरपूर सहयोग है। वे बताते हैं कि परिवार के सदस्य उन्हें स्कूल तक छोड़ते हैंए और कई बार तो साथी शिक्षक भी उन्हें बाइक पर बिठाकर घर से स्कूल लाते ले जाते हैं। मित्रों व परिवारजनों का सहयोग उन्हें और अधिक मजबूत बनाता है।