सीहोर। मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर कल 24 जुलाई को जिला मुख्यालय के दौरे पर आ रहे हैं। दरअसल, 24 जुलाई 1824 को कुंवर चैन सिंह अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए सीहोर की धरती पर ही वीरगति प्राप्त हुए थे। यही वजह है कि प्रत्येक 24 जुलाई को शहर में कुंवर चैनसिंह की छतरी पर पुण्यतिथि कार्यक्रम आयेाजित किया जाता है। इस दिन उन्हें श्रद्धांजलि और गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है। आपको बता दें मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 2015 से सीहोर स्थित इस छतरी पर गार्ड ऑफ ऑनर प्रारंभ किया है।
भारत जोड़ों आंदोलन के संस्थापक डॉ. बलवीर तोमर ने बताया कि 24 जुलाई को सुबह 11.30 इंदौर नाका स्थित चैनसिंह की छतरी पर कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इस दौरान गॉड ऑफ ऑनर दिया जाएगा साथ ही विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र तोमर सहित शहर के गणमान्य नागरिकों को पुष्पांजलि अर्पित की जाएगी। डॉ. श्री तोमर ने शहरवासियों से आयोजन में सम्मिलित होने की अपील की है।
कुंवर चैनसिंह का जीवन परिचय
इतिहासकारों के मुताबिक के मुताबिक कुंवर चैन सिंह का जन्म 10 अप्रैल 1801 को मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ रियासत के राज परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही स्वाभिमानी, होनहार और चुस्त-दुरस्त थे। उन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाने, घुड़सवारी करने और शिकार में गहरी रुचि थी। वे राज्य की आंतरिक और बाहरी राजनीतिक घटनाओं को जानने में भी गहरी रुचि रखते थे। उनका विवाह 19 वर्ष की आयु में कुंवरानी राजवत से हुआ, जो खीची राजवंश की थीं।
अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह
1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने भोपाल के नवाब से समझौता कर सीहोर में एक छावनी स्थापित की और पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक को इसका प्रभारी बनाया। मैडॉक को भोपाल सहित नरसिंहगढ़, खिलचीपुर और राजगढ़ जैसी रियासतों के राजनीतिक अधिकार भी सौंप दिए गए। यह हस्तक्षेप कुंवर चैन सिंह को मंजूर नहीं था। मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को कुछ शर्तें मानने को कहा, जिनमें नरसिंहगढ़ रियासत का अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करना और अफीम की पूरी फसल सिर्फ अंग्रेजों को बेचना शामिल था। कुंवर चैन सिंह ने इन दोनों ही शर्तों को मानने से इनकार कर दिया।
सीहोर में हुई थी अंग्रेजों से मुठभेड़
इतिहासकारों के अनुसार कुंवर चैन सिंह अपने विश्वस्त साथियों सारंगपुर निवासी हिम्मत खां और बहादुर खां सहित कुल 43 सैनिकों के साथ 24 जुलाई 1824 को सीहोर पहुंचे। यहां दशहरा बाग मैदान में उनकी अंग्रेज सैनिकों और पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक से भीषण मुठभेड़ हुई। कुंवर चैन सिंह और उनके मु_ी भर जांबाज साथियों ने अंग्रेजों की तोपों और बंदूकों से लैस फौज का डटकर मुकाबला किया। इस मुकाबले के दौरान कुंवर चैन सिंह रणभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हुए।