मोहन सरकार को चूना लगा रहे सीहोर के अफसर...!

सीहोर। जिलेभर में सडक़ों पर बिना परमिट दौडऩे वाले वाहनों पर कार्रवाई पुलिस-प्रशासन व परिवहन विभाग के अफसर करते हैं, लेकिन यही अफसर बिना परमिट के वाहनों में सवार होकर दिनभर सरकारी कामकाज से इधर-उधर घूमते हैं। ऐसे कई सरकारी विभागों में अनुबंध पर लगे वाहनों में से अधिकांश पर टैक्सी परमिट तक नहीं है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इनके पर कार्रवाई कौन करेगा।

सरकारी विभागों में टैक्सी पास की जगह पर निजी वाहन अटैच किए हुए हैं, जबकि नियम से विभाग में लगने वाले चार पहिया वाहन टैक्सी में पास होना अनिवार्य है। नियम की जानकारी सभी जिला अधिकारियों को है। इसके बावजूद शासन के निर्देशों को ताक पर रखकर अधिकारियों ने निजी वाहन कार्यालय के उपयोग के लिए लगा रखे हैं। जिसकी वजह से परिवहन विभाग को हर साल लाखों रुपए राजस्व की हानि हो रही है। जबकि टैक्सी में पास कराने के लिए लोगों को अधिक टैक्स जमा करना होता है। वहीं रजिस्ट्रेशन एवं फिटनेस की अलग से फीस जमा करनी होती है। निजी में पास कराने पर कम टैक्स लगता है और आजीवन के लिए कोई झंझट नहीं रहता है। 

सरकारी कार्यालयों में दौड़ रहे 50 से अधिक निजी वाहन

बता देें कि शासन ने करीब एक दशक से सभी विभागों में टैक्सी वाहन लगाने के लिए सख्त निर्देश दिए हैं। इसके बावजूद भी जिले में जिला अधिकारियों ने 50 से अधिक निजी वाहन लगा रखे हैं। जबकि निजी वाहन अपने उपयोग में ले सकते हैं। ना कि किसी कार्यालय में लगा सकते हैं। कार्यालय में लगाना है तो उसका टैक्सी में पास होना आवश्यक होता है। अधिकारियों एवं वाहन मालिकों की साठगांठ के चलते निजी वाहनों को विभागों के कार्य के लिए लगाया गया है। निजी वाहन जिला पंचायत, जनपद पंचायतए खनिज विभाग सहित अन्य विभाग में लगे हुए हैं।  

30 से 50 हजार रुपए आता है खर्च

यदि चार पहिया वाहन को टैक्सी में पास कराते हैं तो करीब गाड़ी की कीमत से करीब 8 से 9 प्रतिशत टैक्स जमा करना होता है। साथ ही रजिस्ट्रेशन फीस करीब 3 से 4 हजार रुपएए उसके उपरांत हर साल गाड़ी की फिटनेस करानी होती है। जिसमें करीब एक से डेढ़ हजार तक शुल्क जमा करना होता है।

अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने लगा रखे हैं अपने निजी वाहन

जिला अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने अपने भाई या रिश्तेदार के नाम से गाडिय़ां खरीद ली हैं और अपने कार्यालय में ही गाडिय़ों को लगा रखा हैं। शासन वाहन लगाने पर 25 से 40 हजार रुपए प्रतिमाह भुगतान करता है। गाड़ी भी अधिकारी सामने रहती है और देखरेख होती रहती है।

परमिट के लिए यह है नियम

निजी और टैक्सी वाहन की पहचान के लिए परिवहन विभाग ने इनकी नम्बर प्लेट को अलग कर दिया है। निजी वाहन पर सफेद प्लेट पर काले रंग से नंबर लिखे होते हैंए जबकि टैक्सी वाहनों की नंबर प्लेट पीली रंगी होती है। इसके साथ ही विभागों को टैक्सी नंबरों के साथ ही नियमानुसार अनुबंध करना होता है, मगर ऐसा नहीं होता है। अफसर अपने चहेते को टेंडर देने और खेल करने के लिए बिना टैक्सी नंबरों से अनुबंध कर लेते हैं।




अधिकारियों का कहना

- इस संबंध में जनपद सीईओ सीहोर नमिता बघेल का कहना है टैक्सी पास का वाहन उपलब्ध नहीं होने के कारण प्राइवेट वाहन लगाया गया है। प्राइवेट वाहन को टैक्सी पास में बदलने की कार्रवाई चल रही है।

- इस संबंध में जिला पंचायत की सीईओ डॉ. नेहा जैन का कहना है कि टैक्सी पास की जगह सरकारी कार्यालयों में निजी वाहन लगे हुए हैं तो इसकी जांच कराकर कार्रवाई कराई जाएगी।

- इस संबंध में जिला परिवहन अधिकारी रितेश तिवारी का कहना है कि शासकीय कार्यालय में विभाग अधिकारियों को टैक्सी पास के वाहन अटैच करना चाहिए। निजी वाहनों के अटैच करने से सरकार को राजस्व की हानि होती है।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने