सूखा निसाई जी मे बह रही ज्ञान की गंगा

 *जैन धर्म का ज्ञान "जिनवाणी*

पत्रकार सतेंद्र जैन

आज दिनांक   को प्रयुषण पर्व के पूर्व जिनवाणी जी  कलश छत्र  की शुद्धि की गई हमारे श्रदेय बाल ब्रह्मचारी महाराज  दशमी प्रतिमा धारी श्री आत्मानंद जी महाराज के सानिध्य में गुड्डी दीदी बबीतादीदी के साथ भिलाई से आए भागचंद जैन नीलिमा जैन को भी है सौभाग्य प्राप्त हुआ


कहलाता है, जो जिन (अरिहंत) के पवित्र संदेशों और शिक्षाओं को संदर्भित करता है। यह ज्ञान अरिहंतों द्वारा प्रदान किया जाता है, जिन्होंने अपने केवलज्ञान के बाद सर्वज्ञ वाणी के रूप में इसे प्रकट किया। जिनवाणी, जिसे जिन-वाणी भी कहते हैं, विभिन्न रूपों में पाई जाती है, जिसमें अरिहंतों के प्रवचन और शास्त्रीय ज्ञान (श्रुतज्ञान) शामिल हैं। यह आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक मार्ग का मार्गदर्शन करता है, जो अहिंसा, तपस्या और सत्य के सिद्धांतों पर आधारित है। 

जिनवाणी का अर्थ और महत्व

जिन (अरिहंत) का संदेश:

"जिनवाणी" दो शब्दों से मिलकर बना है: "जिन" जिसका अर्थ अरिहंत (एक पूर्ण ज्ञानी संत) है, और "वाणी" जिसका अर्थ आवाज़ या संदेश है। 

सर्वज्ञता:

अरिहंत के सर्वज्ञ (केवलज्ञानी) रूप से निकलने वाली वाणी को जिनवाणी कहा जाता है, जो सभी जीवों द्वारा उनकी अपनी भाषा में समझी जा सकती है। 

श्रुतज्ञान:

तीर्थंकरों के प्रवचनों को भी जिनवाणी या श्रुतज्ञान (शास्त्रीय ज्ञान) कहा जाता है। 

आध्यात्मिक मार्ग:

जिनवाणी के अध्ययन से आत्मा की शुद्धि होती है और ज्ञान की प्राप्ति होती है। 

जिनवाणी से संबंधित ज्ञान

पाँच ज्ञान के प्रकार:

जैन धर्म में ज्ञान के पाँच प्रकार बताए गए हैं:

मति ज्ञान: इंद्रियों और मन से प्राप्त ज्ञान। 

श्रुतज्ञान: शास्त्रों द्वारा प्रकट ज्ञान, जिसे जिनवाणी का ही एक रूप माना जाता है। 

अवधिज्ञान: दूरदर्शिता या दूर का ज्ञान। 

मनःपर्यय ज्ञान: टेलीपैथी या दूसरे के विचारों को जानने की असाधारण क्षमता। 

केवल ज्ञान: पूर्ण ज्ञान या सर्वज्ञता, जो अरिहंतों को प्राप्त होती है। 

सम्यक् ज्ञान:

सात तत्वों का यथार्थ ज्ञान जो सम्यक् दर्शन के लिए आवश्यक है। 

जिनागम:

जिनवाणी का ही एक अंग, जो तीर्थंकरों के उपदेशों पर आधारित है। 

जिनवाणी के अध्ययन का महत्व

दोषों का नाश:

प्रतिदिन स्वाध्याय करने से आत्मा की सफाई होती है और व्यक्ति अपने दोषों को नष्ट करता है। 

जीवन में धारण करना

जिनवाणी की शिक्षाओं को जीवन में धारण करने से व्यक्ति महामारियों और उपद्रवों से बच सकता है। 

आत्मा का विकास

जिनवाणी का अध्ययन आध्यात्मिक शुद्धि और ज्ञानोदय का मार्ग प्रशस्त करता है।

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