रिपोर्टर
सतेंद्र जैन
मध्यप्रदेश में तहसीलदार और नायब तहसीलदार काम नहीं कर रहे हैं, तहसीलों में सन्नाटा पसरा हुआ है। यह हड़ताल न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्य विभाजन के नए आदेश के विरोध में है।
क्यों नाराज हैं एमपी के तहसीलदार?
दरअसल, मध्यप्रदेश में 6 अगस्त से तहसीलदार और नायब तहसीलदारों ने सामूहिक रूप से राजस्व कार्यों का बहिष्कार कर दिया है। विरोध स्वरूप पूरे प्रदेश में तहसील अधिकारियों ने अपने डोंगल और सरकारी वाहन कलेक्टर कार्यालयों में जमा कर दिए हैं। यह सब सरकार से जारी “न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्यों के विभाजन” संबंधी आदेश के खिलाफ किया जा रहा है। इस फैसले के चलते प्रदेश के राजस्व कार्यालयों में कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया है, जिससे आम जनता को गंभीर असुविधाएं हो रही हैं।
वर्तमान में प्रदेश में कुल 950 तहसीलदार और नायब तहसीलदार पदस्थ हैं, जिनमें से 476 अधिकारियों को गैर-न्यायिक कार्य सौंप दिया गया है। इससे तहसीलों में चल रहे न्यायिक मामलों की सुनवाई प्रभावित हो रही है और प्रकरणों की लंबित संख्या (पेंडेंसी) लगातार बढ़ रही है। राजस्व अधिकारियों का कहना है कि यह निर्णय प्रशासनिक अव्यवस्था को बढ़ावा देगा और प्रभावी न्याय प्रक्रिया में रुकावट डालेगा। यही कारण है कि पूरे प्रदेश में तहसीलदार और नायब तहसीलदार धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। जिससे नामांतरण, बंटवारा और नक्शा तरमीम जैसे राजस्व कार्यों पर ब्रेक लग गया है
राजस्व अभियानों में सराहनीय योगदान
राजस्व विभाग के महा-अभियानों के तहत नामांतरण, बंटवारा और नक्शा तरमीम जैसे करीब 80 लाख प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि जमीन पर कार्य कर रहे तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों ने प्रशासनिक क्षमता की नई मिसाल पेश की है। जब इन प्रकरणों के निराकरण का विश्लेषण वरिष्ठ अधिकारियों से तुलना करते हुए किया गया, तो तस्वीर और भी स्पष्ट हो जाती है। आंकड़े बताते हैं…
तहसीलदार न्यायालयों का प्रकरण निपटान दर: 72.55%
एसडीएम स्तर पर: 60.27%
कलेक्टर स्तर पर: महज 32.68%
यह उत्कृष्ट प्रदर्शन उस स्थिति में हासिल हुआ है, जब प्रदेश में राजस्व अधिकारियों की भारी कमी है। आवश्यक 1,626 पदों के मुकाबले सिर्फ 1,456 अधिकारी कार्यरत हैं। इसके बावजूद ये अधिकारी न्यायिक कार्यों के साथ-साथ शव पंचनामा, कानून-व्यवस्था, आपदा प्रबंधन जैसे कई गैर-न्यायिक दायित्व भी निभा रहे हैं। इसके बावजूद, जब इन्हीं अधिकारियों को न्यायिक कार्यों से हटा दिया जाता है, तो न केवल पेंडेंसी बढ़ती है, बल्कि एक कुशल व्यवस्था भी प्रभावित होती है।