शिक्षकों और छात्र-छात्राओं ने मनाया भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव

 


*रिपोर्टर सतेंद्र जैन*

कटनी 


जिसमे भगवान श्री कृष्ण की मंत्रोच्चारण के साथ पूजा अर्चना की गई जिसके बाद छात्रों द्वारा भजन कीर्तन की प्रस्तुति दी और शिक्षकों द्वारा भगवन श्री कृष्ण के जन्म और जीवन से संबंधित चरित्रों का बखान किया गया मध्य प्रदेश शासन के निर्देश अनुसार  शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बड़गांव में श्री कृष्ण भगवान जन्म महोत्सव पवन दिवस पर श्री कृष्णा बाल लीला श्री कृष्ण कथा का वर्णन किया गया विद्यालय प्रधान प्रचार श्री गोविंद सिंह मरावी ने बतया भगवान कृष्ण के अंतिम शब्द थे, "हे जरे, तू रो मत, यह मेरी ही लीला थी। जा, तुझे इस कार्य के लिए स्वर्ग मिलेगा।" 

अर्थात, जब शिकारी जरा ने गलती से कृष्ण को बाण मार दिया था, तब कृष्ण ने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि यह उसकी गलती नहीं है, बल्कि यह तो होनी ही थी, और यह उनकी लीला का ही हिस्सा है। उन्होंने जरा को यह भी कहा कि वह डरे या दुखी न हो, क्योंकि यह नियति का नियम है. 

कृष्ण के ये शब्द, उनकी करुणा, ज्ञान और जीवन-मृत्यु के चक्र के प्रति समझ को दर्शाते हैं. 

कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। देवकी कंस की बहन थी। कंस एक अत्याचारी राजा था। उसने आकाशवाणी सुनी थी कि देवकी के पुत्र द्वारा वह मारा जाएगा। इससे बचने के लिए कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में डाल दिया। मथुरा के कारागार में ही भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनका जन्म हुआ। कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया। गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता बने


अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का वध किया , उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षस का वध किया। बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ गए वहां पर उन्होने गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला की। इसके बाद मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पाण्डवों की मदद की और विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया। 124 वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की

उनके अवतार समाप्ति के तुरंत बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है। राजा परीक्षित, जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, के समय से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है।

 अध्यापक श्री रामराज लोधी अध्यापक उदय भान सिंह ठाकुर 

 अतिथि शिक्षक आशीष जैन अतिथि शिक्षक आदर्श पटेल शिक्षक  श्री राजेंद्र दोहैया सहित समस्त स्टाफ एवं छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही

*पहली गलती पर सर काटने*

 *की शक्ति होने बाद भी यदि 99 और गलती  सहने का 'सामर्थ्य' है, तो वो कृष्ण हैं*।

' *सुदर्शन' जैसा शस्त्र होने के बाद भी यदि हाथ में हमेशा 'मुरली' है, तो वो कृष्ण हैं*।

 ' *द्वारिका' का वैभव होने के बाद भी यदि 'सुदामा' मित्र है, तो वो कृष्ण हैं*।

 ' *मृत्यु' के फन पर मौजूद होने पर भी यदि 'नृत्य' है, तो वो कृष्ण हैं*।

 ' *सर्वसामर्थ्य' होने पर भी यदि सारथी' बने हैं*, *तो वो कृष्ण हैं*।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने