सीहोर। ठन-ठन की सुनो झनकार, ये दुनिया है काला बाजार, ये पैसा बोलता है, ये पैसा बोलता है... मैं गोल हूं, दुनिया गोल, मैं गोल हूं, दुनिया गोल... जो बोलू खोल दूं सबकी पोल, ये पैसा बोलता है, ये पैसा बोलता है, ये पैसा बोलता है ... साल 1991 में फिल्म कालाबाजार में गीतकार नितिन मुकेश द्वारा गाया गया यह गीत इन दिनों जिले में निजी स्कूलों की शिक्षण व्यवस्था पर सटीक बैठता है।
दरअसल, अच्छी शिक्षा के नाम पर अभिभावकों से मनमानी फीस वसूलने वाले निजी स्कूल सुविधाओं के मामले में शून्य हैं। इन स्कूलों के पास न तो पर्याप्त भवन है और न ही खेल मैदान। चंद कमरों में संचालित ये स्कूल मान्यता के नियमों पर भी खरे नहीं उतर रहे हैं। बावजूद शिक्षा महकमा नियमों को अनदेखा कर संचालित होने वाले निजी विद्यालयों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा हैं। शहर भर के 60 प्रतिशत स्कूल इन नियमों को पूरा नहीं करते हैं।
शहर, गलियों में खुले दो कमरों में चलने वाले दड़बे जैसे स्कूलों से भरा पड़ा है। अधिकतर स्कूल ऐसे हैं जो लोगों ने अपने निजी घरों में ही खोल लिए हैं। यह आलम कुछ चुनिंदा स्कूलों में नहीं है, शहर भर में कई स्कूल ऐसे हैं जिनके हालात ऐसे ही हैं। अधिकारियों से चुपचाप सांठ-गांठ कर स्कूल संचालक मान्यता तो ले आते हैं लेकिन इससे सीधी चोट स्कूली छात्रों के भविष्य पर होती है। समस्याओं की बात करें तो यह स्कूल छात्रों से फीस के नाम पर मोटी रकम वसूलते हैं, लेकिन बेहतर शिक्षा का जो माहौल उन्हें मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता है। इन स्कूलों में न खुला हिस्सा न खेल का मैदान न रोशनीदार कक्षाएं और न ही सुरक्षा गार्डों की तैनाती है। यह संचालक दुकानें खोलकर शिक्षा को बेच रहे हैं। इन दुकानों पर कार्यवाही करना तो दूर इसको देखने के लिए भी कोई जिम्मेदार अधिकारी कभी इन स्कूलों में झांकने नहीं जाते है।
उठ रहे सवालिया निशान
जिनके पास प्राथमिक व माध्यमिक स्कूल की मान्यता है, लेकिन स्कूल भवन के नाम पर केवल दो से तीन कमरें है, जिन्हें भेड़ बकरियों की तरह बच्चों को प्रतिवर्ष बैठाकर स्कूलों का संचालन होता चला आ रहा है। जिला स्तर पर इन स्कूलों को मान्यता किस आधार पर प्रदान कर दी जाती है इस पर सवालिया निशान उठता चला आ रहा है।
कागजों में कॉलम पूरे, हकीकत में शून्य
निजी विद्यालयों को नवीन मान्यता प्राप्ति अथवा नवीनीकरण के समय शिक्षा विभाग द्वारा दिया जाने वाला एक फार्म भरना होता है, जिसमें विद्यालय की संपूर्ण जानकारी फार्मेट होता है। इसमें विद्यालय भवन के साथ संसाधन आदि के बारे में पूछा जाता है। निजी स्कूल संचालक मान्यता प्राप्ति के समय इन कॉलम को तो कूटरचित ढंग से पूरा कर देते हैं। लेकिन हकीकत में संसाधन उनके पास होते नहीं है और उनके इस घालमेल अफसर करते हैं, जिन्हें इन विद्यालयों के निरीक्षण की जिम्मेदारी दी जाती है। निरीक्षण के दौरान यहीं अधिकारी इन स्कूलों के संचालकों को बचा लेते है।
पड़ताल 1. इंदौर-भोपाल हाईवे से चंद दूरी पर शेरपुर में स्थित द न्यू ब्राइट फ्यूचर पब्लिक स्कूल दो-तीन कमरों में संचालित होता मिला। ऊपर छत की जगह टीनशेड थी, जबकि दरवाजे के स्थान पर दुकान की तरह शटर लगी हुई थी। पास में ही खेत है, जिससे जहरीले जीव जंतु आने का डर बना रहता है।
पड़ताल 2. इससे चंद दूरी पर लिटिल एंजल पब्लिक स्कूल हैं, जो तीन कचरों में संचालित हो रहा है. ऊपर छत के स्थान पर टीनशेड है। बारिश में टीनशेड न उड़े, इसलिए उस पर पत्थर रखे हुए थे। बाउंड्री के तौर पर लकडिय़ों में तार बंधे हैं।
पड़ताल 3. कुछ दूरी पर न्यू कॉन्वेंट पब्लिक स्कूल हैं। स्कूल पर छत है, हालांकि ऑफिस के ऊपर टीनशेड डला था। स्कूल परिसर के आजू बाजू झाडिय़ां हैं, जिससे यहां भी जहरीले जीव जंतू आने का भय बना रहता है।
निजी स्कूल के यह मापदंड अनिवार्य
- कक्षा आठवीं तक की मान्यता के लिए विद्यालय भवन 4500 वर्गफीट में होना अनिवार्य है।
- 2000 वर्गफीट का खेल मैदान तथा 2500 वर्गफीट में भवन होना चाहिए।
- हाईस्कूल के लिए 5500 वर्गफीट एवं हायर सेकंडरी के लिए 6500 वर्गफीट स्थल होना चाहिए।
- 2000 वर्गफीट का खेल मैदान शेष भाग निर्माणाधीन होना चाहिए।
- बालक-बालिकाओं के लिए पृथक-पृथक शौचालय।
- शुद्ध पेयजल के इंतजाम होना चाहिए।
- लाइब्रेरी, प्रयोगशाला, स्टाफ रुम, ऑफिस के लिए भी पृथक-पृथक से कक्ष होना चाहिए।