सीहोर। निस्वार्थ भाव से दिया हुआ दान महादान है और इससे मनुष्य को परमपिता का अमूल्य वरदान प्राप्त होता है। योग्य गुरु से शिक्षा प्राप्त कर की गई साधना से साधक अपने लक्ष्य तक पहुंच पाने में समर्थ होते हैं। कहा गया है कि गुरु कभी भी अमंगल नहीं सोचता है, वह सदा शिष्य के चरित्र निर्माण व सफलता की कामना करता रहता है। उक्त विचार शहर के प्राचीन श्री हंसदास मठ, दशहरा बाग उमा शंकर धाम कालोनी के पास जारी सात दिवसीय संगीतमय श्री शिव महापुराण के पांचवें दिन कथा वाचक पंडित चेतन उपाध्याय ने कहे। श्री हंसदास मठ में स्फटिक श्री रिद्धेश्वर महादेव प्राण-प्रतिष्ठा सिद्ध श्री हनुमान महाराज की स्थापना का आयोजन किया जा रहा है। महोत्सव का आयोजन महंत श्री हरिरामदास महाराज के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। शिव महापुराण के अलावा रविवार को हरिरामदास महाराज के सानिध्य में प्रतिमाओं का महास्नान, गंधाधिवास, धूपाधिवास, इत्राधिवास, मूर्तिन्यास, श्री रामार्चा सहस्त्रार्चन उत्सव आदि का दिव्य आयोजन किया गया। वहीं सोमवार को सुख शय्याधिवास, प्राण-प्रतिष्ठा, नित्य पूजन, हवन और आरती दिव्य अनुष्ठान प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतर्गत किया जाएगा। इसके अलावा छह मई को पूर्णाहुति और भंडारे का आयोजन किया जाएगा।रविवार को कथा के पांचवें दिन पंडित श्री उपाध्याय ने कहाकि महापुराण कल्प वृक्ष के समान है, जो इसे जिस कामना के साथ सुनता, वह कामना पूरी होती है। शिव जब अपने भगत पर प्रसन्न होते हैं तो वह उसे सब कुछ प्रदान कर देते हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी बड़े प्रयास की जरूरत नहीं है। वह तो केवल सच्ची श्रद्धा और भक्ति के अधीन है। कथा का शुभारंभ गणेश वंदना से हुआ। कथा के दौरान उन्होंने भगवान गणेश के विवाह सहित अन्य प्रसंगों का वर्णन किया।
आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती
पंडित श्री उपाध्याय ने कहाकि भगवान शिव की भक्ति और आराधना से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है, जो कि जीवन के बंधन से मुक्ति है। उन्होंने धर्म का पालन करने और अधर्म से दूर रहने पर जोर दिया, क्योंकि धर्म का पालन करने से व्यक्ति शुद्ध होता है और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। जब अपना जीवन शिव भक्ति में, कृष्ण भक्ति में, ईश्वर की भक्ति में लगा दे तो वह लोगों से दूर रहता है, क्योंकि अगर वह लोगों के बीच गया तो उसका ध्यान भक्ति में कैसे रहेगा, इसलिए उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए। मनुष्य जीवन का उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति है, किन्तु नाना प्रकार के जंजालों व माया के चलते मुक्ति नहीं पाते हैं। किन्तु जब तक ईश्वर न मिल पाया। मानव अपने जीवन की गरिमा को नहीं समझता है। उन्होंने राग द्वेष आदि से मुक्त होकर संत के बताये रास्ते पर चलने की प्रेरक अपील की।
Tags
शिव महापुराण